आज रामनवमी है लेकिन अनेक राज्यों में सरकारी छुट्टी नहीं है। कई राज्यों में सरकारी कार्यालयों में तो छुट्टी है, लेकिन बैंकों में छुट्टी नहीं है। जबकि गत दिनों गुड फ्राइडे पर पूरे देश में बैंकों सहित सभी सरकारी संस्थान एकमत से बंद थे।
रामनवमी क्या है इसे देश के पूरे 100% लोग जानते हैं और 80% मनाते भी हैं, उस दिन अवकाश नहीं। जबकि गुड फ्राइडे को क्या हुआ था इसे देश के 98% लोग न जानते हैं, न मानते हैं; फिर भी सब जगह छुट्टी।
यहाँ से 4000 किलोमीटर दूर पैग़म्बर मोहम्मद और ईसा मसीह जन्मे थे, इस ख़ुशी में देश भर में आज भी छुट्टी होती है जबकि एक को मानने वाले 17% हैं और दूसरे को मानने वाले तो मात्र 2% हैं; लेकिन इसी धरा पर जन्म लेने वाले भगवान राम, कृष्ण, हनुमान और गणेश के जन्मदिवस पर अनेक ‘सेक्युलर’ राज्यों में छुट्टी नहीं होती क्योंकि इनके जन्म पर कोई सेक्युलर ख़ुश क्यों होगा।
दिल्ली के बैंकों में इस वर्ष कुल 12 धार्मिक अवकाश हैं जिनमें से 3 हिन्दू त्यौहारों पर हैं, 2 ईसाई त्योहारों पर और 4 मुस्लिम त्योहारों पर ! ये विशेषाधिकार तो तब है, जबकि पिछले दस वर्षों से इन दोनों का ‘घोर उत्पीड़न’ हो रहा है। क्या विभाजन के समय इस तरह के सेक्युलरिज़्म की कल्पना की गयी थी?
कुछ राज्य रामनवमी, जन्माष्टमी, रक्षाबंधन आदि प्रमुख हिन्दू त्यौहार तो भूल गये; लेकिन 4 मुस्लिम त्यौहार (ईद-उल-फ़ितर, बक़रीद, मोहर्रम और पैग़म्बर जन्मदिवस) एक भी राज्य नहीं भूला; अपितु कुछ राज्यों में तो बारावफात और जुमात-उल-विदा मिलाकर 6 तक कर दिया है।
तमिलनाडु का उदाहरण ले लीजिये। वहाँ की 88% जनसंख्या हिन्दू है और शेष 6-6% मुस्लिम व ईसाई। वहाँ की सरकार को ईसाई नववर्ष, गुड फ्राइडे, तेलुगु नववर्ष (जी हाँ, तमिलनाडु में तेलुगु नववर्ष), ईद, मजदूर दिवस, बकरीद, मुहर्रम, पैग़म्बर का जन्म दिवस और क्रिसमस- सब याद हैं; केवल रामनवमी भूल गयी। अब इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि राम ने अपने वनवास का अंतिम वर्ष तमिलनाडु में बिताया था, वहाँ शिवलिंग (रामेश्वरम) की स्थापना की थी, वहीं पर सेतु बनाया था और लंका पर चढ़ाई की थी। राम सेक्युलरिज़्म से ऊपर थोड़े ही हैं।
क्या ऐसा सेक्युलरिज़्म देश के बहुसंख्यक 80% मूल निवासियों के स्वाभिमान पर तमाचा नहीं है जिन्होंने इस मिटटी को अपने रक्त से सींचा है? सेक्युलरिज़्म की इस बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए हिन्दू राष्ट्र आवश्यक है जो केवल भाजपा ही कर सकती है।
–महेश बंसल ‘भारतीय’